SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 470
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कल्पसूत्रे सभन्दार्थे भगवतोधर्मदेशना आश्चर्यप्रकटनं च सेणा णामं देवी] उससिंहसेन राजा की शीलसेना नामकी रानी थी। [हत्थिवालो णामं पुत्तो जुवराया होत्था] हस्तिपाल नामक पुत्र युवराज था [तीए णं पावाए पुरीए ॥४५४|| बहिया उत्तरपुरस्थिमे दिसीभाए सव्वोउय पुप्फफलसमिद्धे रम्मे नंदणवणप्पगासे 1 महासेणं नाम उजाणे होत्था] उस पावापुरी के बाहर उत्तर-पूर्व दिशा में सब ऋतुओं ® के पुष्पों तथा फलों से समृद्ध रमणीय नन्दनवन के समान प्रकाशवाला महासेन नामक उद्यान था [तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे महासेणे उज्जाणे समोसढे] उसकाल और उस समय में श्रमण भगवान् महावीर महासेन उद्यान में पधारे ॥७॥ । भावार्थ-उस समय उत्पन्न हुए ज्ञान दर्शन के धारक श्रमण भगवान् महावीर | ने आतमा के अपने और पंचास्तिकायरूप लोक के स्वरूपको यथावत् जान कर के एक योजन प्रमाण प्रदेश तक व्याप्त हो जाने वाली वाणी से धर्म का उपदेश दिया। ॥४५४॥
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy