________________
THE
भगवतोधर्मदेशना आश्चर्यप्रकटनं च
॥४५३||
कल्पसूत्रे ने व्रत अंगीकार नहीं किये [नो णं एवं कस्सवि तित्थयरस्स भूयपुव्वं अओ एयं चउसशब्दार्थे त्थं अच्छेरयं जायं] ऐसा किसी भी तीर्थकरके विषय में नहीं हुआ था अतः यह
चौथा आश्चर्य हुआ।
[तए णं समणे भगवं महावीरे तओ पडिनिक्खमइ. पडिनिक्खमित्ता जणवयविहारं विहरइ] तत् पश्चात् श्रमण भगवान् महावीर वहां से विहार करके जनपद में विचरने लगे। तेणं कालेणं तेणं समएणं पावापुरीणामं णयरी होत्था-रिद्धिस्थिमिय
समिद्धा] उस काल और उस समय में पावापुरी नामकी नगरी थी । वह उंचे उंचे | भवनों से युक्त, स्वपर चक्र के भय से युक्त और धन धान्य से समृद्धथी [तत्थ णं पावाए पुरीए सीहसेणो नाम राया होत्था]. उस पावापुरी नगरी में सिंहसेन नामका
राजा राज्य करता था [महया हिमवंतमहंतमलयमंदरमहिंदसारे] वह महाहिमवान्, | महामलय, मेरु और महेन्द्र पर्वत के समान श्रेष्ठ था [तस्स णं सीहसेणस्स रपणो सील
||४५३॥