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कल्पसूत्रे
सशब्दार्थे
भगवतोकेवलज्ञानप्राप्तिः
॥४५॥
यंतेहि एगे महं दिव्वे देवुज्जोए देवसण्णिवाये देव कहकहे उपिजलगभूए यावि होत्था] ) आने-जाने से एक महान् दिव्य देव प्रकाश हुआ, देवों का संगम हुआ, कल-कल
नाद हुआ और देवों की बहुत बडी भीड हुई ॥६॥ . भावार्थ-तब वह भगवान् अर्हन् और जिन हो गये केवली, सर्वज्ञ और सर्व दर्शी हो गये देवो मनुष्यो और आसुरो सहित लोककी आगति गति स्थिति च्यवन तथा उपपात को और खाये, पिये, किये सेवन किये, प्रकट कर्म को पारस्परिकभाषणको कथन को, मनोगतभावको, इस प्रकार सब पर्यायो को जानने और देखने लगे समस्त लोकमे, सब जीवों के सभी भावों को जानते हुए तथा देखते हुए विचरने लगे तब श्रमण भगवान् महावीर केवलज्ञान और केवलदर्शन की उत्पत्ति के समय में, सबःभवनपति वानव्यन्तर, ज्यौतिषिक तथा विमानवासी देवों का संगम हुआ, कलकल नाद हुआ और देवों की बहुत बड़ी भीड हुई ॥६॥
॥४५०॥