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________________ कल्पसूत्रे सशब्दार्थ ॥४४५॥ प्रादुर्भवनम् इन्द्रों कहे हैं वे ये हैं-चमरेन्द्र १, बलिन्द्र २, धरणेन्द्र ३, भूतानन्द ४, वेणुदेविन्द्र ५, वेणु- चतुष्पष्ठिदालीन्द्र ६, हरिन्द्र ७, हरिसहेन्द्र ८, अग्निसिहेन्द्र ९, अग्निमानवेन्द्र १०, पुन्निन्द्र. ११, देवेन्द्राणां वशिष्ट इन्द्र १२ जलकांत इन्द्र १३, जलप्रभ इन्द्र १४, अमृतगति इन्द्र १५ अमृतवाहनइन्द्र १६, वेलंबइन्द्र १७, प्रभंजन इन्द्र १८ घोषेन्द्र १९, महाघोषेन्द्र २०, चन्द्र इन्द्र २१, सूर्यइन्द्र २२, शकेन्द्र २३, ईशानेन्द्र २४, सनत्कुमारेन्द्र २५, महेन्द्र २६, ब्रह्मेन्द्र २७, लंतकेन्द्र २८, महाशुक्रेन्द्र २९, सहस्रारेन्द्र ३०, प्राणतेन्द्र ३१ अच्युतेन्द्र ३२ ॥३॥ ___ मूलम् बत्तीसं वाणमंतरदेवाणं इंदा पण्णत्ता, तं जहा-काले१ महाकाले२ सुरूवे३ पडिरूवे४ पुण्णभद्दे५ मणिभद्दे६ भीमे७महाभीमेट किन्नरे९ किं पुरिसे१० सप्पुरिसे११ महापुरुसे१२ अईकाये१३ महाकाये१४ गीयरई१५ गीयजसे१६ संनिहिए १७ समाणे१८ धाए१९ विधाए२० इसी२१ ईसीवाले२२ ईसरे२३ ।। ASEAN ॥४४५॥
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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