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कल्पसूत्रे शब्दार्थे ॥३३॥
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उत्तरासंग करते है । दोनों हाथ की अंजलि मस्तक पर स्थापित कर तीर्थंकर के सन्मुख सात आठ पांव जाते हैं वहां बाया पांव उंचा करके दाहिना पांव खडा करते है फिर तीन बार पृथ्वीतल पर मस्तक रख कर किंचिन्मात्र नमन कर कडे त्रुटित से लंबित भुजाएँ पीछी खींचकर करतल मिलाकर शिर से आवर्त देकर व मस्तक पर अंजलि स्थापित करके ऐसा बोलते हैं कि अरिहंत भगवान् को नमस्कार होवो | वे कैसे है धर्म की आदि करने वाले चार तीर्थ स्थापन करनेवाले स्वयमेव तत्वज्ञान प्राप्त करने वाले पुरुषों में उत्तम, पुरुषों में सिंह समान, पुरुषों में पुंडरिक कमल समान पुरुषों में गंध हस्ति समान लोक में उत्तम, लोक के नाथ लोक के हितकारी लोक में प्रदीप समान लोक में उद्योत करनेवाले अभयदान के दाता, ज्ञानरूप चक्षु के दाता, मोक्षमार्ग के दाता भयभीत प्राणियों को शरण देनेवाले, संयमरूप जीवीतव्य देनेवाले, समतिरूप बोधिबीज देनेवाले, धर्म देनेवाले, धर्म के उपदेश करनेवाले धर्म के नायक
शक्रेन्द्रकत
तीर्थंकर
जन्म
महोत्सवः
॥३३॥