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भगवतः समवसरणम्
कल्पसूत्रे
सूचक रूधिर वृष्ट्यादि का ओर व्याधि-रोगों का शीघ्र ही उपशमन होजाना ॥१॥ . सशब्दार्थे ___ भावार्थ-जिस समय श्रमण भगवान् महावीर को अनुत्तर केवल वर ज्ञान दर्शन ॥४३३॥
उत्पन्न हुआ उस समय तीनों लोको में प्रकश हुओ उसी समय भगवान् के बारह गुण
और चोतीस अतिशय प्रगट हुए। वे बारह गुण इस प्रकार है-अनन्त केवलज्ञान १, - अनन्त केवल दर्शन २, अनन्त सौख्य ३, क्षायिकसम्यक्त्व ४, यथाख्यात चारित्र ५,
| अवेदित्व ६, अतीन्द्रियत्व ७, और दानादि पांच लब्धियां १२ । वे दानादि पांच Iril लब्धियां इस प्रकार है-दानलब्धि१, लाभलब्धि २, भोगलब्धि३, उपभोगलब्धि४, वीर्य
लब्धि ५, ये पूर्वोक्त बारह गुण प्रगट हुए । चोतीस अतिशय इस प्रकार १. मस्तक । के केश, श्मश्रु मूछ, शरीर के रोम व नख अवस्थित रहते हैं [मर्यादा से अधिक नहीं वढते हैं] २. उनका शरीर निरोगी रहता है और मल वगैरह अशुचि का लेप नहीं लगता है ३. मांस रुधिर गाय के दूध जैसा उज्ज्वल रहता है ४. पद्म कमल की गंध
||४३३॥
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