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________________ कल्पसूत्रे शब्दार्थे ॥४३२|| यणं आगया वंदंति ] अन्य तीर्थिक अन्य प्रावचनिकों - वादियों का भगवान् के पास आते ही प्रभु को वंदन करना २५ [आगय समाणा अरहओ पायम्ले निप्पड - वयणा हवंति ] उन अन्य तीर्थिक प्रावचनिकों का भगवान् के पास आते ही निरुत्तर हो जाना २६ [जओ ओ वि य णं अरहंतो भगवंतो विहरति, तओ-तओ वियणं जोय पणवीसाए णं इति न भवइ] जहां जहां पर अर्हत भगवंत विहार करते हैं वहां - वहां चारों दिशाओं में पच्चीस-पच्चीस योजन परिमित क्षेत्र में ईति - उपद्रव का नहीं होना २७ [मारी न भवइ ] विशुचिका आदि मारी का नहीं होना २८ [स चक्कं न भवइ] स्व चक्र कृत भय का नहीं होना २९ [परचक्कं न भवइ] पर चक्र कृत भय का नहीं होना ३० [अबुट्टी न भवइ] अतिवृष्टि का नहीं होना ३१ [ अणावुट्टी न भवइ ] अनावृष्टि का नहीं होना ३२ [दुब्भिक्खं न भवइ] दुर्भिक्ष का नहीं होना ३३ [yogvirar of उपाय बाहीय खिप्पामेव उवसमंति] पूर्वोत्पन्न उत्पातों की अनिष्ट 00000005 भगवंतः समवः सरणम् ॥ ४३२ ॥
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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