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कल्पसूत्रे समन्दार्थे
भगवतः .
समव
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सरणम्
दसणे समुप्पन्ने] केवल ज्ञान और केवल दर्शन प्रगट हुए [तंसि च णं समयंसि] उस समय में [समणस्स भगवओ महावीरस्स] श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के तेल्लुकं पयासियं] तीनों लोक में प्रकाश हुआ [बारसगुणा चोत्तीसं अतिसेसा समुप्पज्जित्था] बारह गुण और चौत्तीस अतिशय प्रगट हुए [तं जहा] वे बारह गुण इस प्रकार हैं[अणंतं केवलनाणं] (१) अनंत केवलज्ञान१. [अणंतं केवलदसणं](२) अनंत केवलदर्शन [अणंतं सोक्खं] (३) अनंत सौख्य (३) [खाइयसंमत्ते] क्षायिक सम्यक्त्व (४) [अहक्खायचारिते] यथाख्यातचारित्र (५) [अवेइत्तं] अवेदित्व (६) [अइंदियत्तं] अतीन्द्रियत्व (७) दाणाईओ पंच लद्धीओ (१२) दानादि पांचलब्धियां (१२)[तं जहा]-७ वे | दानादि पांच लब्धियां इस प्रकार हैं [दाणलद्धी] दान लब्धि १ [लाभलद्धी] २ लाभ लब्धि २ [भोगलद्धी] भोगलब्धि ३ [उवभोगलद्धी] उपभोग लब्धि ४ [वीरियलद्धी] | वीर्यलब्धि ५ [एए बारस गुणा पाउब्भूया] इस प्रकार के ये बारह गुण प्रगट हुए।
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