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केवलज्ञानदर्शनप्राप्ति
वर्णनम्
कल्पसूत्रे समय ग्रीष्म ऋतु सम्बंधी दूसरा मास और चौथा पक्ष-वैशाख शुद्ध पक्ष था । उस पशब्दार्थ । वैशाख शुद्ध पक्ष की दशमी तिथि में, सुव्रत नामक दिवस में, विजय मुहूर्त में, चन्द्रमा १४२२॥
के साथ उत्तर फाल्गुनी नक्षत्र का योग होने पर, छाया जब पूर्व दिशा की ओर जाने लगी थी, व्यक्ता नाम की पौरूपी में अर्थात् दिन के तीसरे प्रहर में, सालवृक्ष के मूल
के समीपवर्ती प्रदेश में, चौविहार षष्ठभक्त के तप से, गोदोह नामक उत्कुटुक आसन Hd से आतापना लेते हुए, दोनों घुटने ऊपर और सिर नीचा किये हुए भगवान् धर्म
ध्यान और शुक्ल ध्यान रूपी कोष्ठ में प्रविष्ट हुए थे । ध्यान के द्वारा उन्होंने इन्द्रियों के अन्तःकरण के व्यापार को रोक दिया था। शुक्ल ध्यान चार प्रकार का है-(१) पृथक्त्ववितर्क सुविचार (२) एकत्व वितर्क अविचार (३) सूक्ष्मक्रिय अप्रतिपाति (४) समुच्छिन्नक्रिय अनिवर्ति भगवान् शुषलध्यान के पृथक्त्ववितर्क सुविचार नामक प्रथमपाये को ध्याकर एकत्व वितर्क अविचार नामक दूसरे पाये में लीन थे। उसी समय
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