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________________ R२२॥ . .. उपसूत्रे दाय भगवतः समवसरणम् २३॥ भगवान् को निर्वाण-मोक्ष का कारण, कृत्स्न-सकल पदार्थों को जानने के कारण सम्पूर्ण या अखण्ड, प्रतिपूर्ण-समस्त अंशो से युक्त, अव्याहत-व्याघातों से रहित, आवरणहीन, अनन्त-अनन्त वस्तुओं को जानने वाला तथा अनुत्तर सर्वोत्कृष्ट केवलज्ञानऔर केवल दर्शन उत्पन्न हुआ। तीनों लोक में प्रकाश हुआ ॥६१॥ . समोसरण अध्ययन - मूलम्-जंसि च णं समयंसि समणस्स भगवओ महावीरस्स अणुत्तरे केवलवरनाणदसणे समुप्पन्ने तसि च णं समयंसि तेल्लुक्कं पयासियं बारसगुणाचोत्तीसं अइसेसा पाउब्भवित्था बारसगुणा तं जहा-अणंतं केवलनाणं १, अणंतं केवलदंसणं २, अणंतं सोक्खं ३, खाइए समत्ते४, अहक्खायचारित्ते५, अवेयत्तं ६, अइंदियत्तं७, दाणाइओ पंचलद्धीओ १२. तं जहा-टाणलटी १ || -EHESHESTER - hindi - •
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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