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________________ 15 सूत्रे मन्दा ॥४२१॥ आयवर्ण आयामाणस] ऐसे समय में भगवान् गोदोह नामक उकडू आसन से स्थित होकर आतापना ले रहे थे [छट्टेणं भत्तेणं अपाणएणं उडूढजाणु अहोसिरस्स झाणकोट्टोव यस्] विहार षष्ठ भक्त की तपस्या थी। प्रभुश्री ने दोनों घुटनो के ऊपर हाथ रखे थे और मस्तक नीचे की ओर झुका रखा था ध्यानरूपी कोष्ट में प्राप्त थे [सुक्कज्झाणन्तरियाए वट्टमाणस्स निव्वाणे कसिणे पडिपुण्णे अव्वाहए निरावरणे अनंते अणुत्तरे केवलवरणाणदंसणे समुप्पण्णे] शुक्लध्यान की आन्तरिका में वर्तमान थे । उस समय भगवान् को मुक्ति के हेतु भूत, अविकल प्रतिपूर्ण अव्याबाध, अनावरण, अनन्त तथा अनुत्तर केवलज्ञान, केवलदर्शन ' उत्पन्न हुआ, तीनों लोक में प्रकाश हुवा ॥ ६१ ॥ भावार्थ - दस महास्वप्न के पश्चात्, तप, संयम, की आराधना करते हुए श्रमण भगवान् वहावीर को दीक्षा अंगीकार किये, बारह वर्ष और तेरह पक्ष अर्थात् साढे बारह वर्ष और पन्द्रह दिन बीत जाने पर संयम - पर्याय का तेरहवां वर्ष चलता था, उस केवलज्ञानदर्शनप्रामि वर्णनम् ॥४२१५
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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