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कल्पसूत्रे सशब्दार्थ ॥४२०॥
केवलज्ञानदर्शनप्राधि वर्णनम्
। अणंते अणुत्तरे केवलवरणाणदंसणे समुप्पण्णे। ॥६॥
शब्दार्थ-तए णं] उसके बाद [तस्स समणस्त भगवओ महावीरस्स] श्रमण । भगवान् महावीर ने तप संयम की आराधना करते हुए [बारसेहिं वासेहिं तेरसेहि पक्खेहिं वीइकंतेहिं तेरसमस्स वासस्स परियाए वट्टमाणस्स] बारह वर्ष और तेरह पक्ष व्यतीत हो चुके थे। तेरहवां वर्ष चल रहा था [जे से गिम्हाणं दोच्चे मासे चउत्थे पक्खे वइसाहसुद्धे] ग्रीष्म ऋतु का दूसरा महिना था, चौथा पक्ष वैशाख शुद्ध पक्ष था [तस्स णं वइसाहसुद्धस्स दसमी पक्खेणं सुव्वएणं दिवसेणं विजएणं मुहुत्तेणं] उस वैशाख शुक्ल पक्ष की दसती तिथि थी सुव्रत दिवस, विजय मुहूर्त [हत्थुत्तराहिं नक्खत्तेणं जोगमुवागएणं पाइणगामिणीए छायाए वियत्ताए पोरिसीए] और उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र का योग था। छाया पूर्व दिशा की ओर ढल रही थी। व्यक्त नामक पौरुषी थी अर्थात् दिन का तीसरा प्रहर था [तत्थ गोदोहियाए उकुडुयाए निसिजाए
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