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कल्पसूत्रे
केवलज्ञानदर्शनप्रामि वर्णनम्
१४१९॥
उपदर्शित करेंगे। इन पदों की व्याख्या इसी सूत्र में पहले की जा चुकी है । अतः सिंहावसशब्दार्थे
लोकन न्याय से वहीं व्याख्या देखलेनी चाहिये। यह दसवें महास्वप्न का फल है ॥६०॥ .
____ मूलम्-तए णं तस्स समणस्स भगवओ महावीरस्स तवसंजममाराहे ril माणस्स बारसेहिं वासेहिं तेरसेहिं पक्खेहिं वीइकंतेहिं तेरसमस्स वासस्स
परियाए वट्टमाणस्स जे से गिम्हाणं दोच्चे मासे चउत्थे पक्खे वइसाहसुद्धे, तस्स णं वइसाहसुद्धस्स दसमीपक्षेणं सुवएणं दिवसेणं विजएणं मुहुत्तेणं हत्युत्तराहिं नक्खत्तेणं जोगमुवागएणं पाईणगामिणीए छायाए वियत्ताए पोरिसीए तत्थ गोदोहियाए उक्कुडुयाए निसिज्जाए आयावणं आयावेमाणस्स छद्रेणं भत्तेणं अपाणएणं उड्ढजाणु अहोसिरस्स झाणकोट्ठोवगयस्स सुक्कझाणंतरियाए वट्टमाणस्स निव्वाणे कसिणे पडिपुण्णे अव्वाहए निरावरणे
॥४१९॥