________________
दशमहा- . स्वप्नफल.
कल्पसूत्रे सशन्दार्थ ॥४१८॥
OCTOSE
फल है। ९ भगवान् ने जो हरिमणी. और वैडूर्यमणि की कान्ति के समान अपनी आंत. से मानुषोत्तर पर्वत को सब तरफ से आवेष्ठित और परिवेष्टित देखा, उससे समस्त लोक में-देवों.. मनुष्यों एवं असुरों सहित सम्पूर्ण लोक में भगवान् की कीर्ति का गान होगा। वर्ण, शब्द और श्लोक का भी गान होगा। 'अहा, यह पुण्यशाली हैं' इत्यादि सभी दिशाओं में व्याप्त होनेवाले साधुवाद-प्रशंसा वचनों को कीर्ति कहते हैं। एक दिशा में व्याप्त होनेवाला साधुवाद 'वर्ण' कहा जाता है। आधी दिशा में फैलनेवाला साधुवाद शब्द कहा जाता है। और जिस स्थान पर व्यक्ति हो, वहीं उसके गुणों का वखान होना श्लोक कहलाता है। यह नौवे महास्वप्न का फल है । १० मेरु पर्वत पर मेरु पर्वत की चुलिका के ऊपर उत्तम सिंहासन पर अपने आप को बैठा देखा, उससे भगवान् बीर प्रभु देवों मनुष्यों एवं असुरों सहित सभा के मध्य में विराजित होकर सर्वज्ञ प्ररूपित धर्म का कथन, प्रज्ञापन, प्ररूपण करेंगे, धर्म को दर्शित, निदर्शित और
CA
॥४१८॥