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________________ SSSC कल्पपत्र दशमहास्वमफलवर्णनम् कल्पपत्रे सीहासणवरगओ अप्पा दिट्रो] जो मेरु पर्वत पर मेरु की चोटी के उपर श्रेष्ठ सिंहासन सशब्दार्थे पर बैठे अपने आपको देखा [तेणं भगवं सदेवमणुयासुराए परिसाए मझगए केवलि॥४१५॥ पन्नत्तं धम्मं आघविस्सइ पन्नविस्सइ परूविस्सइ दंसिस्सइ निदंसिस्सइ उवदंसिस्सइ] इसके फलस्वरूप में भगवान् देव मनुष्य और असुरों की परीषदा-सभा के मध्य विराजमान होकर केवलिप्ररूपित धर्म का आख्यान-कथन-करेंगे प्रज्ञापना करेंगे प्ररू. पणा करेंगे दर्शित करेंगे विस्तार से दर्शित करेंगे और उपदर्शित करेंगे १० ॥६॥ भावार्थ-भगवान् द्वारा देखे गये इन पूर्वोक्त दश महास्वप्नों का क्या अतिमहान् फल होगा ? इस प्रकार की जिज्ञासा (जानने की इच्छा) होने पर उस के फल को कहते न हैं। यथा १ श्रमण भगवान् महावीर ने स्वप्न में जो भयंकर और प्रचण्ड रूपवाले ताड जैसे पिशाच को पराजित किया देखा, उससे भगवान् मोहनीय कर्म को मूल से उखाडेंगे। यह पहले स्वप्न का फल है। २ भगवान् ने जो श्वेत पंखोंवाला पुरुष कोकिल GES ॥४१५॥
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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