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________________ करपत्रे सशब्दार्थे ॥४१४॥ भुयाहिं तिण्णो दि] जो भगवान् ने महासागर को भुजाओं से तैरकर पार करना देखा दशमहा स्वमफल[तेणं अणादीयं अणवदग्गं चाउरंतसंसारसागरं तरिस्सइ] इससे भगवान् अनादि अनन्त वर्णनम् . चातुर्गतिक संसारसागर को पार करेंगे ७ [जंणं तेयसा जलंतो दिणयरो दिद्यो] जो भगवान् ने तेजसे जाज्वल्यमान सूर्य को देखा [तेणं अणंतं अणुत्तरं कसिणं पडिपुण्णं अव्याहयं निरावरणं केवलवरनाणदंसणंसमुप्पजिस्सइ] इससे अनन्त अनुत्तरपरिपूर्ण अप्रतिपाती और निरावरण-आवरणवर्जित उत्तम केवलज्ञान और केवलदर्शन प्राप्त करेंगे ८ [ज णं हरिवेरुलियवन्नाभेणं नियगेणं अंतेणं माणुसुत्तरे पव्वए सवओ समंता अवेढिय परिवेढिए दिने] जो हरिमणि और वैडूर्यमणि की आभावाली अपनी आंत से मानुषोत्तरपर्वत को आवेष्टित परिवेष्टित देखा [तेणं भगवओ कित्तिवन्नसदसिलोया सदेवमणुयासुरे लोए गिजिस्संति] इससे भगवान् की कीर्ति तथा वर्ण शब्द और श्लोक देव । मनुष्य असुर सहित लोक में गाये जायेंगे ९ [ज णं मंदरे पव्वए मंदरचूलियाए उवरिं ॥४१४॥
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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