SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 429
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दशमहा. स्वप्नफल. वर्णनम् ॥४१३॥ -... कापसूत्रे | विस्सइ दंसिस्सइ निदंसिस्सइ उवदंसिस्सइ] इससे भगवान् खसमय परसमय संबन्धी सभन्दाथै द्वादशांग गणिपिटकका आख्यान करेंगे, प्रज्ञापन करेंगे प्ररूपण करेंगे भेदानुभेद प्रद र्शनपूर्वकः प्रदर्शित करेंगे, वारंवार निदर्शित करेंगे और प्रदर्शित करेंगे ३ [जं णं सव्वरयणामयं दामदुगं दि] जो सर्व रत्नमय मालायुगल देखा [तेणं भगवं अगारधम्म अणगारधम्मं ति दुविहं धरमं आघविस्सइ] इसका फलखरूप भगवान् अगारधर्म और अनगारधर्म रूप दो धर्मों का कथन करेंगे ४ [जं णं सेयगोवग्गो दिदो] जो सफेद गायो का समूह देखा [तेणं चाउठवण्णाइण्णं संघं ठाविस्सइ] इससे भगवान् चतुर्विध-श्रमण श्रमणी, श्रावक श्राविकारूप-संघ की स्थापना करेंगे ५ [जणं पउमसरं दि] जो भगवान् ने पद्मसरोवर-पद्मों से युक्त सरोवर देखा [तेणं भवणवइवाणमंतरजोइसवेमाणिय त्ति चउविहे देवे आघविस्सइ] इससे भगवान् भवनपति वानव्यन्तर ज्योतिष्क और वैमानिक इस प्रकार चार प्रकार के देवों की प्ररूपणा करेंगे ६ [जं णं महासायरों ॥४१३॥
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy