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कल्पसूत्रे सशब्दाय
॥३१॥
मेरु पर्वत से दक्षिण दिशा के संपूर्ण अर्धलोक के अधिपति सौधर्म देवलोक संबंधी ३२ बत्तीस लाख विमान के स्वामी, ऐरावत गज का वाहनवाले, देवताओं में इन्द्र रज रहित निर्मल वस्त्र धारण करनेवाले, गले में माला, मस्तक पर मुकुट धारण करनेवाले नवीन सुवर्ण के झगमगाट करते हुए मनोहर चंचल दोनों कान के कुंडल से सुशोभित गंडस्थलवाले, प्रकाशमान देहवाले, लटकती हुई माला धारण करनेवाले, महर्द्धिक महाद्युतिक महाबलवंत महायशवंत, महानुभाववाले, महासुखवाले ऐसे देवेन्द्र सौधर्म देवलोक के सौधर्मावतंसक विमान में सुधर्मा सभा में शक्र सिंहासन पर बत्तीस लाख विमान, चौरासी हजार सामानिक देव, तेतीस त्रायस्त्रिंशक देव, चार लोकपाल, परिवार सहित आठ अग्रमहिषियों तीन परिषदा, सात अनीक, सात अनीकाधिपति, तीन लाख छत्तीस हजार आत्मरक्षक देव और अन्य बहुत देव और देवियों का वैसे ही आभियोगिकों का अधिपतिपना, अग्रगामीपना, स्वामीपना, महत्तरिकपना, आज्ञा ईश्वर और सेनापतिपना
1956 CONCOCCOCK
शक्रेन्द्रकत
तीर्थकर
जन्ममहोत्सवः
॥३१॥