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________________ IISERITE सान्दार्थ ॥४०९ | भयंकर रूपवाले तालपिशाच (ताड के सदृश खूब लम्बे पिशाच) को अपने पराक्रम से भगवतो. पराजित हुआ देखा । २ द्वितीय स्वप्न-इसी प्रकार एक अत्यंत सफेद पंखों से युक्त HITI विहारः महास्वप्नपुरुष जाति के कोकिल को देखकर जागे। ३ तीसरा स्वप्न-एक विशाल चित्रविचित्र दर्शनं च चित्रों से विचित्र होने के कारण अनेक वर्ण के पंखों वाले, अर्थात् नाना प्रकार के वर्णों से युक्त पंखवाले पुरुष कोकिल को देखकर जागे। ४ चौथा स्वप्न-एक वडे सर्वरत्नमय मालाओं के युगल को देखकर जागे। ५ पांचवां स्वप्न सफेद रंग की गायों के || एक समूह को देखकर जागे । ६ छहा स्वप्न-एक विशाल पद्मसरोवर को देखा, जो सब तरफ से कमलों से छाया हुआ था। ७ सातवां स्वप्न-हजारों लहरों से युक्त एक महासागर को अपनी भुजाओं से पारकर दिया देखा। ८ आठवां स्वप्न-तेज से जाज्वल्यमान विशाल सूर्य को देखा। ९ नौवां स्वप्न-हरि (पिंगलवर्ण की) मणि और वैर्य ll (नीले वर्ण की) मणि के वर्ण के समान कान्तिवाली अपनी आंत-आंतरी से मानु ॥४०९॥
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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