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________________ कल्पसूत्रे सन्दाथै ॥१०॥ दशमहास्वप्नफलवर्णनम् । षोत्तर पर्वत को चारों तरफ से सामान्य रूप से आवेष्टित और विशेष रूप से परिवेष्ठित देखा। १० दसवां स्वप्न-महान् मेरू पर्वत की चोटी पर श्रेष्ट सिंहासन पर स्थित, अपने आपको देखा। यह दस स्वप्न देखकर भगवान् जागृत हुए ॥५९॥ मूलम्-एएसि णं दसमहासुविणाणं के महालए फलवित्तिविसेसे भवइ त्ति सो कहिज्जइ-जणं समणेण भगवया महावीरेण सुविणे महाघोरदित्तरूवधरेतालपिसाए पराजिए दिढे तेणं भगवं मोहणिज्ज कम्मं उग्धाइस्सइ १। जं णं सुकिल्लपक्खगे पुंसकोइले दिवे, भगवं सुक्कझाणोवगए विहरिस्सइ २। जंणं चित्तविचित्तपक्खंगे पुंसकोइले दिवे, तेणं भगवं ससमयपरसमइयं दुवालसंगं गणिपिडगं आघविस्सइ पन्नविस्सइ परूविस्सइ दसिस्सइ निदंसिरसइ, उवदंसिस्सइ ३। जं जं सव्वरयणामयं दामदुगं दिटुं, तेणं भगवं अगारधम्म ॥४१॥
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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