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________________ - कल्पसूत्रे शब्दार्थ 1180311 I जान लेनी चाहिए । इस प्रकार वे दोनों प्रकार की कायगुप्ति से युक्त इस प्रकार भगवान् मन, वचन और काय ये तीनों गुप्तियों से युक्त होने के कारण वे गुप्त थे । तथा गुप्तेन्द्रिय थे-विषयों में प्रवृत्त होने वाली इन्द्रियों का निरोध कर चुके थे । भगवान् गुप्त ब्रह्मचारी थे । अर्थात् यावज्जीवन मैथुन - त्याग रूप चौथे ब्रह्मचर्य महाव्रत का अनुष्ठान करने वाले थे । तथा-ममता से रहित थे | अकिंचन थे, क्रोधमान माया और लोभ से रहित थे । अन्तर्वृत्ति से शान्त थे, बाहर से प्रशान्त थे, और भीतर बाहर से उपशान्त थे । सब प्रकार के सन्ताप से रहित थे । आव से रहित थे । बाह्य और आभ्यन्तर ग्रन्थि से रहित थे । द्रव्य - भाव ग्रन्थ [परिग्रहण] के त्यागी थे । आस्रव के कारणों को नष्टकर चुके थे । द्रव्य और भाव से वर्जित थे । आत्मनिष्ट थे । अथवा 'आयट्ठिए' की 'आत्मार्थिक' ऐसी छाया होती है । इसका अर्थ है - आत्मार्थी, आत्म कल्याण के इच्छुक, भगवान् आत्म 90069/ICSE भगवतो - विहारः महास्वझदर्शनं च ॥४०३
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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