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कल्पसूत्रे 'सशब्दार्थे
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ऐसा कहना सत्यवचन है । जीव को 'यह अजीव है' ऐसा कहना मृषावचन है । 'आज इस नगर में सौ बालक जन्मे' इस प्रकार पहले निर्णय किये बिना ही कहना सत्या - मृषावचन है। 'गांव आ गया' इस प्रकार का कहना न सत्य है, नतृषा [असत्य ] है, इसलिए यह असत्यानृषावचन- व्यवहारभाषा है । इन चारों प्रकार के वचन योग के त्याग को वचनगुप्ति कहते हैं । अथवा प्रशस्त वचनों का प्रयोग करना और अप्रशस्तवचनों का त्याग करना वचनगुप्ति हैं । भगवान् इस वचन गुप्ति से युक्त थे । भग
काय गुप्ति से युक्त थे । कायगुप्ति दो प्रकार की है (१) कायिक चेष्टाओं को त्याग देना और (२) चेष्टाओं का आगम के अनुसार नियमन करना । इनमें परीषह उपसर्ग आदि उत्पन्न होने पर कायोत्सर्गक्रिया आदि के द्वारा शरीर को अचल कर लेना अथवा योग मात्र का निरोध हो जाने की अवस्था में पूर्ण रूप से कायिक चेष्टा का रुक जाना प्रथम काय गुप्ति हैं। गुरु से आज्ञा लेकर शरीर, संथारा, भूमि आदि की
भगवतोविहारः
महास्वन
दर्शनं च
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