________________
कल्पसूत्रे शब्दार्थे
॥ ३९६ ॥
तेरपक्खा वक्ता ] आत्मा को भावित करते करते बारह वर्ष और तेरह पक्ष व्यतीत हो गये [तेरसमस्त बासस्स परियाए वहमाणाणं जे से गिम्हाणं दोच्चे मासे चउथे वसाह] भगवान् की दीक्षा के तेरहवें वर्ष के पर्याय में वर्तमान ग्रीष्म ऋतु का जो दूसरा मास और चौथा पक्ष - वैशाख शुक्ल पक्ष था [तस्स णं वइसाह• सुद्धस्स नवमी पक्खेणं जंभियाभिहस्स गामस्स बहिया उजुवालियाए णईए उत्तरकूले सामगाभिहस्स गाहावइस्स खित्तम्मि सालरुक्खस्स मुले रतिं काउस्सग्गे ठिए] उस वैशाख शुक्ल पक्ष की नवमी के दिन भगवान् भिंग नामक ग्राम के बाहर, ऋजु - बालिका नदी के उत्तर किनारे, सामग नामक गाथापति के खेत में, साल वृक्ष के नीचे, रात्रि में कायोत्सर्ग में स्थित हुए [तत्थ णं छउमत्थावत्थाएं अंतिमराइयंमि भगवं इसे दस महासुमिणे पासित्ताणं पडिबुद्धे ] तं जहा - छद्मस्था अवस्था की उस अन्तिम रात्रि में भगवान् यह दस महास्वप्न देखकर जागे । वे स्वप्न ये हैं [एगं चणं महं
भगवतोविहारः
महास्वझ दर्शनं च
॥ ३९६ ॥