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कल्पसूत्रे ।। णं महं हरिवेरुलियवन्नामेणं नियगेणं अंतेणं माणुसुत्तरं पव्वयं सव्वओ समंता। भगवतो.
विहारः सशब्दार्थ आवेढियपरिवेढियं ९, एगं च णं महंमंदरे पव्वए मंदरचूलियाए उवरिं सीहा- महास्वान
दर्शनं च सणवरगयं अप्पाणं सुमिणे पासित्ता णं पडिबुद्धे ॥५९॥
शब्दार्थ-तए णं से समणे भगवं महावीरे इरियासमिए] उसके बाद श्रमण भगवान महावीर ईर्या समिति सम्पन्न [जाव गुतबंभयारी] यावत् गुप्त ब्रह्मचारी [अभमे] ममत्त्व रहित [अकिंचणे] अपरिग्रही [अकोहे] क्रोधरहित [अमाणे] मान रहित [अमाये] मायारहित [अलोहे] लोभरहित [संते] शान्त [पसंते] प्रशान्त [उवसन्ते] इपशान्त [परिनिव्वुए] परिनिर्वृत्त [अणासवे] आश्रव रहित [अग्गंथे] ग्रन्थरहित [छिण्णग्गंथे] छिन्न ग्रन्थ [छिन्न सोए] शोक रहित [निरूवलेवे] लेप रहित [आयहिए] आत्मस्थित [आयहिए] आत्मा का हित करने वाले [आयजोइए] आत्म ज्योतिष्कप्रकाशक [आयपरक्कमे] आत्म वीर्यवान [समाहिपत्ते] समाधि प्रात [कंसपायंव मुक्क- ॥३९२॥