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कस्पस्त्रे सभन्दाथै ॥३८६॥
समाप्त हो जाने पर चम्पानगरी से विहार कर षण्मानिक नामक गांव के बाहरी बगीचे अंतिमो
पसर्ग में कायोत्सर्ग में स्थित हुए। वहां एक गुवाल ने आकर भगवान् वीर प्रभु को देखा
निरूपणम् और इस प्रकार कहा-'हे भिक्षु ! सामने खडे मेरे इन दोनों वैलों की रखवाली करना। यह वचन कहकर वह गांव में चला गया। जब वह गुवाल गांव जाकर वापिस लौटा तो उसे वहां बैल नजर नहीं आये । तब उसने भगवान् से पूछा हे 'भिक्षु' मेरे बैल कहां चले गये ?' इस प्रकार जिज्ञासा करने पर भी ध्यान में लीन भगवान् ने कुछ उत्तर नहीं दिया। तब वह गुवाल पूर्वभव में बांधे हुए वैरानुबंधी कर्म के उदय से कुपित हो कर एकदम ही क्रोध से लाल हो गया, और क्रोध से जल उठा। उसने भगवान् के दोनों कानों में शरकट नामक कठिन वृक्ष की दो कीलें बनाकर तथा कुल्हाडे के । पिछले भाग से ठोंक ठोंक गाड दीं । कानों के भीतर ठोंकी हुई कीलों के बाहर निकले हुए सिरे उसने कुल्हाडे से काट डाले, जिससे देखने वाला देख न सके 5 ॥३८६॥