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________________ कल्पसूत्रे शब्दार्थे : ॥ ३८३॥ मिसेमाणो भगवओ कण्णेसु सरगडनामस्स कढिणरुखस्स कीले निम्माय] तब उसने पूर्व भय के वैरानुबंधी कर्म के कारण क्रुद्ध होकर लाल होकर ओर मिसमिसाते हु - नामक कठिन वृक्ष की दो कीलें बनाकर [कुढारप्पहारेण अंतो निखणिय तेसिं • उवरि भागे छेदीअ ] भगवान् के कानों में कुठार के प्रहार से अन्दर ठोंकदी और उनके बाहरी भागों को काट डाला [जे णं ते न कोइ नाउं सविकज्जा न विय निस्सारिउं] जिस से किसी को मालूम न हो और कोई निकाल भी न सके [पहुस्स इमो अट्ठारसमभवद्धकम्मुणो उदओ समुवट्टिओ] प्रभु के यह अठारवें भव में बांधे हुए कर्म का उदय उपस्थित हुआ [दुरासओ सो गोवालो तओ निक्खमिय अन्नत्थ गओ ] वह दुराशय गुवाल वहां से निकल कर अन्यत्र चला गया [पहू य तओ निक्खमिय funerate rate भिक्खट्टाए अडमाणे सिद्धत्थ सेट्टि गिहमणुपविट्टे] भगवान् वहां से निकलकर मध्यमपात्रा नगरी में भिक्षा के लिए अटन करते हुए सिद्धार्थ सेठ 16012500 अंतिमोपसर्ग निरूपणम् ॥ ३८३॥
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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