SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 398
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कल्पसूत्रे सशब्दार्थ १३८२ ॥ चाउम्मासं चंपा नयरीए चउम्मासतवेणं ठिए ] तत्पश्चात् भगवान् चौमासी तप के साथ चंपा नगरी में बारहवें चातुर्मास के लिए विराजे [तओ निक्खमिय छम्माfor free गामस्स बहिया उज्जाणम्मि काउसो ठिए ] तदनंतर वहां से विहार कर षण्मानिक नाम के ग्राम के बाहर उद्यान में कायोत्सर्ग में स्थित हुए [तत्थ णं एगो गोवालो आगंतूण भगवं दद्दणं एवं वयासी - ] वहां एक गोवाल आया और भगवान् को देखकर इस प्रकार बोला - [भो भिक्खू ! मम इमे बल्ले craft after गामम्मि गओ ] हे भिक्षु ! मेरे इन दोनों बैलों की रखवाली करना ऐसा कहकर गांव में चला गया [गामाओ आगमिय बइल्ले न पासइ ] गांव से लौटने पर उसे बैल दिखाई न दिये [भगवं पुच्छेइ - कत्थमे बइल्ला ?] भगवान् से पूछा- कहां है मेरे बैल ? [झाणनिमग्गे भगवं न किंचि वयइ] ध्वानमग्न • भगवान् कुछ न बोले । [तओ से पुव्वभववेराणुबंधिकम्मुणा कुद्धो आसुरुतो मिसि ISCOURSE अंतिमोपसर्ग निरूपणम् ॥ ३८२॥
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy