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________________ कल्पसूत्रे सशब्दार्थे . ॥३८१॥ अंतिमोपसर्ग निरूपणम् सल्लाइं निखायाई, तेणं एस पहू अउलं वेयणं अणुभवइति । तए णं सो विजो सेटुिं कही। पहू य गहिय भिक्खे उज्जाणं समणुपत्ते । सो सेट्टि विज्जो य उज्जाणे गमिय काउसग्गट्ठियस्स पहुस्स कण्णेहिंतो महईए जुत्तीए ताई सल्लाइं निस्सारैति । जइ वि कीलगुद्धरणे पहुस्स दुरसहा वेयणा संजाया। तहवि भगवं चरिमसरीरत्तणेण अनंतबलत्तणेण यतं उज्जलं तिव्वं घोरं कायरजणदुरहियासं वेयणं सम्मं सही। तए णं से सेट्ठी विज्जो य तेण सुह कम्मुणा बारसमे कप्पे उववण्णा इइ गंयंतरे ॥५८॥ शब्दार्थ-[तए णं से समणे भगवं महावीरे कोसंबीयाओ णयरीओ पडिनिक्खाइ] उसके बाद श्रमण भगवान् महावीर ने कोशाम्बी नगरी से विहार किया [पडिनिक्खमित्ता जणवयं विहारं विहरइ] विहार कर जनपद में विचरने लगे [तओ पच्छा भगवं बारसमं ॥३८॥
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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