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कल्पसने
सशब्दार्थे
चंदनबालायाः
चरितHTH वर्णनम्
॥३७६॥
ऐसा विचार कर लिया। कुछ ही समय के बाद उसे अवसर मिल गया। एक बार धनावह सेठ दूसरे गांव चले गये। उन्हें बाहर गया जानकर मूला ने नाई से वसुमती का सिर मुंडवा दिया। हाथों में हथकडी और पैरों में बेडी डाल दी। तब वसुमती को एक भोयरे में बंद करदी। भोयरे को ताला जड़ दिया। यह सब करके वह मूला, | कौशाम्बी में ही अपने मायके [पिता के घर] चल दी। हाथों-पैरों से जकडी वसुमती भोयरे में पड़ी हुई मन ही मन विचार करने लगी। वह क्या विचार करने लगी सो कहते हैं। ___कहां तो मेरा वह राजवंश-जिसमें मेरा जन्म हुआ था और कहां यह इस समय की मेरी दुर्दशा ? दोनों में तनिक भी समानता नहीं । आह ? पूर्वभव में मेरे द्वारा उपार्जित अशुभ कर्म न जाने कैसा है ? जिसका फल ऐसा भोगना पड रहा है। इस दुर्दशा के रूप में जो उदय में आया है । इस प्रकार विचार करती हुई वसुमती ने
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