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कल्पसूत्रे सशब्दार्थ
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चंदनः वालायाः पनि , वर्णनम्
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अपना पिता समझकर पैर धोने लगी। धनावह ने मना किया, पर वह नहीं मानी। जब वसुमती धनावह के चरण प्रक्षालन कर रही थी, उस समय उसका केशकलाप (जुडा) खुल गया। सेठ धनावह ने सोचा-इसके बाल कोचड वाली जमीन पर न गिर जाएं, यह सोचकर उन्होंने निर्विकारभाव से-यष्टि (लकडी) के समान अपने हाथों में । लेकर उसके केशपाश को बांध दिया। उस समय धनावह सेठ की पत्नी मूला खिडकी में बैठी थी। उसने वसुमति का केशकलाप बांधते हुए धनावह को देखकर मन में विचार किया-इस लडकी का पालन पोषण करके मैंने अपना ही अनिष्ट कर डाला है । क्यों कि इस छोकरी के साथ मेरे पति ने विवाह कर लिया तो इसके साथ विवाह कर लेने पर मैं अपदस्थ हो जाऊंगी-अर्थात् मैं अधिकार से वंचिक हो जाऊंगी। अतएव मुझे कोई ऐसा प्रयत्न करना चाहिए कि मेरे पति इससे विवाह न कर सकें। जब विमारी उत्पन्न हो रहो हो तभी उसका इलाज कर लेना ही अच्छा है । मूला ने
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