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कल्पसूत्रे
सशन्दार्ये
चंदनवालायाः चरितवर्णनम्
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हृदय को विदारण कर देने वाले, मन में खेद उत्पन्न करने वाले, आर्यजनों के लिए अनुचित तथा वज्रपात की तरह असह्य वचन सुनकर बसुमती आक्रन्दन-रूदन करने लगी। रोती हुई वसुमती की दुःखभरी वाणी सुनकर उसी चौराहे पर खडे हुए धनावह नामक एक सेठ ने विचार किया-'आकृति से प्रतीत होता है कि रोने वाली
लडकी यह या तो बडे राजा की अथवा किसी धनवान् की बेटी होनी चाहिए। यह | बेचारी लडकी दुःखिनी न हो तो अच्छा ।' ऐसा सोचकर धनावह सेठ ने वेश्या का मुंह मांगा मोल चुकाकर राजकुमारी बसुमति को ले लिया। वह उसे अपने घर ले गये । घर ले जाने के पश्चात् धनाबह सेठ और उनकी पत्नी मूलाने वसुमती का अपनी ही बेटी के समान पालन-पोषण करना प्रारंभ किया। एक वार ग्रीष्म ऋतु का समय था, सेठ धनावह दूसरे गांव से लौटकर अपने घर आये थे। जब वे घर आये, उस समय कोई नौकर उपस्थित नहीं था। अतएव वसुमती ही धनावह को
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