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कल्पसूत्रे दा ||३७३ ॥
और वसुमती नामक पुत्री को रथ में बिठलाकर कौशम्बी की ओर ले चला । रास्ते में उस योद्धा ने कहा- 'राजा दधिवाहन की रानी धारिणी को मैं अपनी स्त्री बनाऊंगा' । योद्धा का यह कथन धारिणी ने सुना । और समझा । उसे शील के खंडित होने का हुआ । अतएव उसने अपनी जिह्वा बाहर खींच ली और प्राणत्याग दिये । धारिणी को मृतक अवस्था में देखकर योद्धा भयभीत हो गया । वह सोचने लगाकहीं ऐसा न हो कि यह - वसुमती भी धारिणी की भांति कोई अवांछनीय कार्य कर बैठे-प्राण त्याग दे ! यह सोच उसने अपने मन की कोई भी बात वसुमती से न कहकर कौशाम्बी के चौराहे पर ले जाकर उसे बेच दिया । बिकती हुई वसुमती को योद्वा के द्वारा निश्चित किया हुआ शुल्क देकर एक वेश्या ने खरीद लिया । तत्पश्चात् वसुमति ने उस गणिका से पूछा- माताजी, तुम कौन हो - मैं वेश्या हूं । वेश्या का काम है-पर-पुरुषों को प्रसन्न करना विलास हास आदि करके उनका मनोरंजन करना ।'
चंदन
वालायाः
चरित
वर्णनम्
॥ ३७३ ॥