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________________ कल्पसूत्रे सशब्दार्थे ॥३७७|| चंदनवालायाः चरितवर्णनम् यह निश्चय कर लिया कि 'जब तक मैं इस कारागार से छटकारा न पाऊंगी तव l तक अनशन तपस्या करूंगी।' इस प्रकार विचारकर वह वसुमती 'नमो अरिहंताणं' इत्यादि रूप पंचपरमेष्ठी मंत्र का जाप करने लगी। इस प्रकार तीन दिन बीत गये। चौथे दिन धनावह सेठ दूसरे गांव से लौटे । उन्हें वसुमती दिखलाई नहीं दी तो | भृत्य आदि परिजनों से उसके विषय में पूछताछ की । इस प्रकार सेठ के द्वारा जानने की जिज्ञासा करने पर भी, मूला द्वारा मना किये हुए नोकर चाकर वसुमती के विषय में कुछ भी न बोले। तब धनावह सेठ को क्रोध आगया उन्होंने कहा-तुम लोक जानते बूझते भी नहीं कहते हो तो मेरे घर से बाहर निकल जाओ। इस प्रकार सेठ के वचन सुनकर एक वृद्ध दासी ने सोचा-मेरे जीवन से भी वसुमती जीवीत रहे, अर्थात् मेरे प्राण जाते हों तो भले जायं, मेरे प्राणों के बदले वसुमती के प्राण बच जाने चाहिए। यह सोचकर उसने समग्र वृतान्त धनावह से कह दिया। इस वृतान्त को सुनकर धना ATEST ॥३७७॥
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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