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चंदनवालायाः चरित
वर्णनम्
कल्पसूत्रे l आदि बन्धनों को छेदने के लिये लुहार को बुलाने उसके घर चला गया [सा वसुमई सशन्दा य स वप्फियमासं सुप्पं हत्थेण गहिय चिंतीअ-] वसुमती उबले हुए उडदों वाले सूप ॥३७१॥
A को हाथ में लेकर सोचने लगी-[इयो पुव्वं मए किंपि दाणं दाऊणमेव पारणगं कयं] - इससे पहले मैंने कुछ दान देकर ही पारणा किया है [अज्जउ न किंपि दाउणं कहं
पारेमि ? ] आज कुछ भी दान दिये बिना कैसे पारणा करू ? [केरिसो मे दुहविवागो al उदिओ, जेणं अहं एरिसं दसं संपत्ता] कैसा मेरे पाप कर्म का उदय आया है कि मैं
ऐसी दुर्दशा को प्राप्त हुई [जइ कस्सवि अतिहिस्स एवं भत्तं दच्चा अहं पारणगं करेमि . INHM तो सेयं-त्ति चिंतीअ] यदि मैं किसी अतिथि विशेष को यह भोजन देकर पारणा करूं ril तो अच्छा है यह सोच करके [गिहदेहलीए एगं पायं बाहिं एगं पायं च अंतो किच्चा IMAIL मुणिमग्गं पासमाणी चिटुइ] वह एक पैर देहली के बाहर और एक पैर भीतर करके
मुनि की राह देखती हुई बैठी [सा चेव वसुमई चंदणस्सेव सीयलसहावत्तणेण चंदन
॥३७॥