SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 386
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कल्पसूत्रे शब्दार्थे ॥ ३७० ॥ Zee 1 एण सा जीवउ' त्ति कट्टु सेट्टिणो तं सव्वं कहियं ] यह सुन कर एक बूढी दासी ने 'मेरे जीवन से भी वह जीये' अर्थात् मेरे प्राण जाते हों तो भले जाएं ऐसा सोचकर उसने समस्त वृत्तान्त धनावह श्रेष्ठी से कह दिया [तं सोऊण सेट्ठी सिग्धं तत्थ गंतूणं तालगं भंजिअ दारं उग्वाडिय वसुमई आसासीअ ] यह वृत्तान्त सुनकर सेठ शीघ्र ही भोयरे में पहुंचा वहां जाकर उसने ताला तोडा और भोयरे में पहुंच कर वसुमती को आश्वासन दिया [त णं से सेट्टी गिहे न भायणं न य भत्तं कत्थवि पासइ ] उसके बाद सेठ को घर में न कोई बर्तन दिखाई दिया और न भोजन ही [पसुनिमित्तं fromise बाफियमासे चेत्र तत्थ पासइ] पशुओं के लिए उबाले हुए उडद ही वहां नजर आये [ अणभायणाभावे सुप्पे गहिय तेणं भत्तङ्कं वसुमईए समाधिया ] दूसरा वर्तन न होने से उन्हें सूप में लेकर उसने खाने के लिए वसुमती को दिये [सयं च निगडाइ बंधणच्छेयण लोहयारमाकारिडं तग्गिहे गमिअ] धनावह सेठ स्वयं बेडी चंदनवालायाः चरितवर्णनम् ॥३७०॥
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy