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________________ चंदनबालायाः चरितवर्णनम् कल्पसूत्रे AU भव में मेरे द्वारा उपार्जित अशुभ कर्म न जाने कैसा है ? जिसका फल ऐसा भोगना ... सशब्दार्थ पड रहा है [एवं चिंतेमाणा 'सा कारागारमुत्तिपज्जंतं तवं करिस्सामि' त्ति कटु ॥३६९॥ मणमि परमेट्रीमंतं जपिउ मारभीअ] इस प्रकार विचार करती हुई उसने 'मैं कारागार से मुक्त होने तक तप करूंगी' ऐसा निश्चय करके मन में परमेष्ठी मंत्र का जाप करना | आरंभ कर दिया [एवं तीए तिन्नि दिणा वइक्कंता] यों उसके तीन दिन बीत गये | [चउत्थे दिणे सेट्री गामंतराओ आगओ वसुमई अदळूण परियणे पुच्छीअ] चौथे दिन # सेठ घर आये । वसुमती को न देखकर परिजनों से पूछा [मूला निवारिया ते तं न | किंपि कहीअ] मूला ने उन्हें मनाकर दिया था, अतः उन्होंने कुछ भी नहीं बतलाया [तओ कुद्धो सेट्री भणीअ-जाणमाणावि तुम्हे वसुमइं न कहेह अओ मज्झ गिहाओ | णिग्गच्छह] तब क्रुद्ध होकर सेठ ने कहा-'तुम जानते हुए वसुमती के विषय में नहीं बतलाते हो तो मेरे घर से चले जाओ [त्ति सोऊण एगाए वुट्टाए दासीए ममं जीवि ॥३६९॥
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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