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करपसूत्रे सशन्दार्थे ॥३६८
हो जाऊंगी [उप्पज्जमाणा चेव वाही उवसामेयधि' त्ति कट्ट] बिमारी को उत्पन्न होते
चंदन
बालायाः ही शान्त कर देना चाहिये । इस प्रकार सोच कर [एगया अन्नगामगयं सोडिं मुणिय
चरितसा नाविएण तीए सीरं मुंडावीय सिंखलाए करे निगडेण पाए नियंतिय] एक बार सेठ । वर्णनम् " को दूसरे गांव गया जानकर उसने नाई से वसुमती का सिर मुंडवा कर हथकडियों से र हाथ और बेडियों से पैर बांधकर (एगम्मि भूमिगिहे तं ठाविय तं भूमिगिहं तालएण
नियंतिअ सय तस्सि चेव गामे पिउगेहं गया] उसे एक भूमिगृह में डाल भूमिगृह को ताले से बंध कर उसी ग्राम में वह अपने पिता के घर चली गई [सा य वसुमई तत्थ छहाए पीडिज्जमाणा चिंतेइ-] वसुमती उस भोयरे में भूख और प्यास से पीडित होती हुई सोचती है।
[कत्थ रायकुलं मेऽस्थि] कहां तो मेरा वह राजवंश [दुइसा केरिसी इमा] और कहां यह मेरी इस समय की दुर्दशा [किं मे पुराकयं कम्मं विवागो जस्स ईरिसो] पूर्व
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