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________________ सस्त्र ॥३५७|| अभिग्रहार्थमटमाणस्य । भगवतविपये लोक वित डा र्कादिकम् में आया कल्पवृक्ष ही हाथ से चला गया। मानों हाथ में आया हुआ सर्वोत्तम हीरा सन्दाथै गुम हो गया। इस प्रकार विचार करके चन्दनबाला रुदन करने लगी-उसके नेत्रों से आंसू बहने लगे । चन्दनबाला के रुदन करने पर भगवान् शेष रहे हुए एक बोल की पूर्ति हुई जानकर पुनः वापिस लौटे। लौटकर चन्दवाला के हाथ से भगवान् ने उबले | हुए उडद बाकले-पात्र में ग्रहण किये, और ग्रहण करके वहां से लौट गये। उस काल और उस समय में अर्थात् भगवान् महावीर के भिक्षा ग्रहण करके ने | अवसर पर चन्दन बाला को खरीदने वाले धनावह सेठ के घर में देवों ने पांच दिव्य वस्तुएं प्रकट की। वे इस प्रकार हैं-(१) देवों ने स्वर्ण मुद्राओं की वृष्टि की (२) पांच वर्ण के अचित्त फूलों की वर्षा की। (३) वस्त्रों की वर्षा की। (४) दुन्दिभियां बजाई (५)आकाश के मध्य में 'अहो दानं, अहो दानं' का उच्चस्वर से घोष किया। तत्पश्चात् देवों ने 'जय - on जय' शब्द का प्रयोग करके चन्दन बाला की महिमा प्रसिद्ध की। द्रव्यशुद्ध दायकशुद्ध | ॥३५७॥
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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