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अभिग्रहार्थमटमाणस्य
मा विषये लोक वितदिक
फरपत्रे । और प्रतिग्राहकशुद्ध तीनों प्रकार से त्रिकरणशुद्ध होने से उस चंदनबालाने अपना संसार प्रशन्दार्थे , को अल्प बनाया। चन्दनबाला की बेडियों की जगह दोनों हाथ कंकणों से और दोनों
पैर नूपुरों से अलंकृत हो गये। उसके मुंडित मस्तक पर सुन्दर केशपाश उत्पन्न हो गया। " सारा शरीर ‘भांति-भांति के वस्त्रों और आभूषणों से सुशोभित हो गया। सब जगह खूब हर्ष ही हर्ष छा गया। देवदुन्दुभी का घोष सुना, तो सब लोग वहीं आ पहुंचे, जहां
चन्दनबाला थी और उसके प्रभाव की प्रशंसा करने लगे। सबने धनावह सेठ को I धन्यवाद देते हुए उनकी पत्नी मूला की निन्दा की उसे धिक्कार दिया। मूला की
निन्दा सुनकर चन्दनबाला निन्दा करने वाले लोगों को रोकती हुई कहने लगी-हे भाइओं इस प्रकार मत बोलो । मूला माता हो मेरा अनन्त उपकार करने वाली है, जिसके प्रभाव से आज मेंने-भगवान् का अभिग्रह पूर्ण करने का यह शुभ अवसर का लाभ किया है, पाया है और सन्मुख किया है। अर्थात् यह मूला माता का ही उपकार
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