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________________ ॥३५८॥ अभिग्रहार्थमटमाणस्य मा विषये लोक वितदिक फरपत्रे । और प्रतिग्राहकशुद्ध तीनों प्रकार से त्रिकरणशुद्ध होने से उस चंदनबालाने अपना संसार प्रशन्दार्थे , को अल्प बनाया। चन्दनबाला की बेडियों की जगह दोनों हाथ कंकणों से और दोनों पैर नूपुरों से अलंकृत हो गये। उसके मुंडित मस्तक पर सुन्दर केशपाश उत्पन्न हो गया। " सारा शरीर ‘भांति-भांति के वस्त्रों और आभूषणों से सुशोभित हो गया। सब जगह खूब हर्ष ही हर्ष छा गया। देवदुन्दुभी का घोष सुना, तो सब लोग वहीं आ पहुंचे, जहां चन्दनबाला थी और उसके प्रभाव की प्रशंसा करने लगे। सबने धनावह सेठ को I धन्यवाद देते हुए उनकी पत्नी मूला की निन्दा की उसे धिक्कार दिया। मूला की निन्दा सुनकर चन्दनबाला निन्दा करने वाले लोगों को रोकती हुई कहने लगी-हे भाइओं इस प्रकार मत बोलो । मूला माता हो मेरा अनन्त उपकार करने वाली है, जिसके प्रभाव से आज मेंने-भगवान् का अभिग्रह पूर्ण करने का यह शुभ अवसर का लाभ किया है, पाया है और सन्मुख किया है। अर्थात् यह मूला माता का ही उपकार ॥३५८॥
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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