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कल्पसूत्रे. समन्दार्थे ॥३५४॥
अभिग्रहार्थमटमाणस्य भगवतविपये लोक वितदिम
नहीं है, इसमें कोई न कोई कारण होना चाहिए, जो हमें मालुम नहीं पड़ता। कोई कहते-यह भिक्षु उन्मत्त होने के कारण चक्कर काटा करता है। दूसरे कहते-यह किसी राजा का गुप्तचर है यह अपने राजा के किसी विशेष कार्य को लेकर घूमता है। किसी ने कहा यह चोर है और चोरी के उद्देश से घूमता है । कोई-कोई कहते थे- यह भिक्षु चौवीसवें तीर्थकर है, और अपनी प्रतिज्ञा की पूर्ति के लिए भ्रमण करते हैं । कुछ दिनों बाद सभी जन वीर भगवान् से परिचित हो गये । जान गये कि यह भिक्षु तीन लोक के स्वामी और संसार के प्राणी मात्र के कल्याणकर्ता श्रमण भगवान् महावीर हैं, और दुष्कर-दुष्कर [अत्यंत ही कठोर] अभिग्रह के कारण भ्रमण करते हैं। जब लोगों को पता लगा तो वे इस प्रकार शोक करने लगे-आह ! हम सब अभागे हैं, जो ऐसे त्रिलोकीनाथ महापुरुष का अभिग्रह पूर्ण करने में समर्थ नहीं हैं । इस प्रकार अभिग्रह पूर्ति के निमित्त भिक्षा के लिए भ्रमण करने वाले भगवान् महवीर के
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