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________________ कल्पसूत्रे THथुइंसु] देव दुदुभियों की ध्वनि सुनकर लोग वहां आये और चन्दनवाला की स्तुति अभिग्रहार्थ मटमाणस्य प्रशन्दार्थे । | करने लगे [धनावहसेद्विस्त धण्णवायं दलमाणा तब्भज्जं मूलं निदिंसु] धनावाह भगवत॥३५३॥ सेठ को धन्यवाद देते हुए उसकी पत्नी मूला की निंदा करने लगे [तं सोऊण चंदण विषये बाला लोगे निवारेमाणी वदीअ-] यह सुनकर चन्दनबाला ने उन्हें रोक दिया और लोक वित कादिकम् कहा-[भो लोगा! एवं मा वयंतु मम उ एसेव मूला माया अनंतोवगारिणी अस्थि जप्पभावेण अज्ज मए एरिसे सुअवसरे लद्धे पत्ते अभिसमन्नागएत्ति] मूला माता ही मेरी महान् उपकारिणी है जिसके प्रभाव से आज मुझे यह सुअवसर प्राप्त हुआ है, IST लब्ध हुआ है और मेरे सामने आया है ॥५६॥ भावार्थ-इस प्रकार भगवान् श्री महावीर को प्रतिदिन भिक्षा के लिए पर्यटन will करते देखकर लोग आपस में तर्क वितर्क करते थे। उन लोगों में से कितनेक लोग इस प्रकार कहते-यह भिक्षु प्रतिदिन भिक्षा के लिए घूमता है, मगर भिक्षा लेता ॥३५३।।
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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