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पत्रे शब्दार्थे
॥ ३५२॥
३. वस्त्रों की वर्षा हुई ४ दुंदुभियों की ध्वनि हुई ५ आकाश में अहोदान अहोदान का घोष हुआ [देवा जय जय सदं पउंजमाणा चंदणवालाए महिमं करिंसु ] जय जयकार करके देवों ने चंदनबाला के महिमा का प्रकाश किया [तेणं दव्वसुद्धेणं] द्रव्यशुद्ध [दायगi] दायकशुद्ध [पडिग्गहियसुद्वेणं] परिग्राहक शुद्ध [तिविहेणं] तीन प्रकार से [तिकरणसुद्धेf] त्रिकरण शुद्ध होने से [संसारे परितीकए] उस चंदनवालाने अपना संसार को अल्प कर दिया [तीए निगडवंधणद्वाणम्मि हत्थपाया वलयणेउरसमलंकिया जाया] बेडियों की जगह उसके हाथ पैर कडों और नूपुरों से अलंकृत हो गये [केसपासो सुंदरी समुब्भुओ] सुन्दर केशपाश उत्पन्न हो गया [तीए सव्वं सरीरं नाणाविहवत्थालंकारविभूसियं संजायं] उसका समस्त शरीर नाना प्रकार के वस्त्रों से और अलंकारों से विभूषित हो गया [सव्वत्थ हरिसपगरिसो जाओ ] सर्वत्र हर्ष का उभार आ गया [देवदुंदुहिज्झणिं सुणिय लोगा तत्थ आगंतूण चंदणवालं
अभिग्रहार्य.
मटमाणस्य
भगवत
विपये
लोक वितर्कादिकम्
॥३५२॥