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________________ तीथकराभिषेकनिरूपणम् रिका दिशाकुमारी अपने २ कूट में यावत् विचरती हैं उनके नाम-१ रूपा २ रूपांसा | कल्पसूत्रे सशब्दार्थे । ३ सुरूप और ४ रूपकावती ये भी पूर्वोक्त प्रकार तीर्थंकर भगवान् की माता के पास आती है । . ॥२५॥ I और कहती है कि तुम डरना नहीं यों कहकर भगवान् तीर्थंकर की चार अंगुल छोडकर नाभी नाल का छेदन करती है, उस नाल को खड्डा में गाडती है फिर रत्नों व वज्ररत्नों से उस खड्डे को पूरा करती है उस पर हरताल की पीठिका बांधती है हरताल की पीठिका बांधकर पूर्व उत्तर व दक्षिण इन तीन दिशा में तीन कदली के घर का वैक्रिय करती हैं कदली घरके बीच में तीन चौशाल भुवन का वैक्रिय करती है इनके बीच में तीन सिंहासन का वैक्रिय करती हैं। फिर वे मध्य रुचक पर रहनेवाली चार महत्तरिका (व्यंतर जाती की देवियां) तीर्थंकर व उनकी माता के पास आती है, वहां तीर्थंकरको करतल (हथेली) में और - माता को वाहा से पकडकर दक्षिण दिशा के कदली गृह में लाती है वहां भगवान् al को और उनकी माता को सिंहासन पर बैठाती है फिर वहां शतपाक व सहस्रपाक तेल से ॥२५॥
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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