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तीर्थकराभिषेकनिरूपणम्
कल्पसूत्रे (। उनके शरीर को मर्दन करती है सुगंधित महागंधवाला गंध पूडा से उनको पीठी लगाती सशब्दार्थे
• है वहां से उन दोनों को पूर्व दिशा के कदली गृह में चौसाल भुवन में सिंहासन पास ॥२६॥ - लाती हैं वहां उस सिंहासन पर दोनों को बैठाकर तीन प्रकार के पानी से स्नान कराती
है जैसेकी-१ गंधोदक २ पुष्पोदक और ३ शुद्धोदक इस प्रकार तीन प्रकार के पानी से स्नान कराये पीछे भगवान् तीर्थंकर को करतल से और उनकी माता को बांहा से पकडकर उत्तर दिशा के कदली गृह के चउसाल के सिंहासन पास आती है वहां उनको सिंहासन पर बैठाकर आशीर्वाद देती है कि अहो भगवन् पर्वत जितनी आयुष्य वाले होवो तत्पश्चात् वहां से भगवान् तीर्थंकर को और उनकी माता को हाथ से ग्रहण कर जहां जन्म भवन होता है वहां लाती है वहां तीर्थंकर की माता को उनके शय्या पर बैठाती है और तीर्थंकर को उनकी माता के पास बैठाती हैं फिर वे गाती हुई पास में खडी रहती है ॥३॥
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