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भगवतो.
कल्पसत्रे
ऽभिग्रह
वर्णनम्
सशब्दार्थे ॥३४१॥
| गुप्त नामक मंत्री था। गुप्त नामक मंत्री की पत्नी का नाम नन्दा थी। नन्दा श्राविका थी और रानी मृगावती को सहेली थी। वीर भगवान् ने पोष मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि में द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव की अपेक्षा, तेरह बातों से युक्त इस प्रकार का अभिग्रह ग्रहण किया पहले द्रव्य की अपेक्षा से अभिग्रह बतलाते हैं-(१) सूप (छाजले) के कोने में, (२) उबाले हुए उडद अर्थात् | वाकले हों, क्षेत्र से अभिग्रह बतलाते हैं-(३) भिक्षा देनेवाली काराग्रह में स्थित हों,
(४) कारागार में देहली-दरवाजे पर हों (५) सो भी बैठी हों, (६) वह भी एक पैर | देहली से बाहर निकाले हो और दूसरा पैर देहली से भीतर करके बैठी हो, काल से |
अभिग्रह बतलाते हैं (७) तीसरे पहर अन्य भिक्षाजीवियों के लोटकर चले जाने पर, भाव से अभिग्रह बतलाते हैं-(८) भिक्षा देनेवाली खरीदी हुई हो, दासी बनी हो | मगर राजा की कन्या हो। (९) उसके हाथों पैरों में बेडिया पडी हों, (१०) मस्तके