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। भगवतोऽभिग्रह
कल्पसूत्रे सशब्दार्थे ॥३४२॥
वर्णनम्
मुंडा हुआ हो, (११) कांछ बांधी हुई हो, (१२) तेले की तपस्या से युक्त हो और (१३) आंसू बहा रही हो। इस प्रकार के अभिग्रह से अगर आहार मिलेगा तो मैं पारणा करूंगा, इन तेरह बोलों में से किसी एक की कमी होगी और अभिग्रह पूरा न होगा तो छह मासी तपस्या करूंगा। इस प्रकार मन ही मन में निश्चय करके भगवान् भिक्षा के लिए कौशम्बी के घर-घर में परिभ्रमण करते थे, परन्तु किसी भी घर में यह तेरह बोल का अभिग्रह पूर्ण नहीं होता था ॥५५॥
. मूलम्-एवं पइदिणं भगवं अडमाणे पासिय लोगा अण्णमण्णं वितकेंति, । तत्थ केइ एवं वयंति-एस णं भिक्खू पइदिणं अडइ, ण उण भिक्खं गिण्हइ,
एत्थ केणवि कारणेण हायव्यं'। 'केइ वयंति-उम्मत्तणेण भमइ' । अवरे वयंतिअयं कस्स वि रण्णो गुत्तयरो किंपि विसिटुं कज्जमुद्दिसिय अडइ। अण्णे वयंति
॥३४२॥