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फल्पसत्रे
सशब्दार्थे ।
भगवतो. ऽभिग्रहवन
देश से विहार किया। विहार करके जहां श्रावस्ती नामकी नगरी थी, वहां पधारे। और अनेक प्रकार के तपश्चरण से अपनी आत्मा को भावित करते हुए भगवान् ने दसवां चौमासा वहीं किया। वहां पर भगवान् ने अष्टमभक्त (तेले) की तपस्या के साथ एक रात में पूर्ण होनेवाली भिक्षुप्रतिमा-मुनि के विशिष्ट अभिग्रह को अंगीकार करके ध्यान किया। वहां भी भगवान् श्री महावीर ने देवकृत, मनुष्यकृत और तिर्यंचकृत तरह-तरह के उपसर्गों को विना क्रोध के सहन किये। इसी प्रकार के विहार को अंगीकार करके एक गांव से दूसरे गांव विचरते हुए भगवान् वीर प्रभुने ग्यारवां चौमासा वैशाली नगरी में किया। चौमासे की समाप्ति के पश्चात् वीर प्रभु चलते-चलते शिशुमार नगर में पधारे। तदनन्तर भगवान् कौशाम्बी नगरी में पधारे। कौशाम्बी नगरी में शतानीक नामक राजा था। मृगावती नामक उनकी रानी थी। मृगावती की द्वारपालिका का नाम विजया था। शतानीक राजा का विजय नामक धर्माध्यक्ष था और
ETICSERECTION
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