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कल्पसूत्रे
भगवतो
ऽभिग्रह
वर्णनम्
तइयाए पोरिसीए अन्नभिक्खायरिएहिं निव्वत्तेहिं] काल से-(७) तीसरे प्रहर में अन्य सशब्दार्थे भिक्षाचरों के लौट जाने पर [भावओ दाइया कयकीया दासित्तं पत्ता रायकण्णा] भाव से ॥३३९॥ Ill () दायिका खरीदी हुइ हो दासी बन गइ हो मगर राजकुमारी हों, [निगडबद्धहत्थपाया
मुंडियमत्थया] उसे हाथों-पैरों में बेडी हो, सिरमुंडा हो [११ बद्धकच्छा] ११ काछ बंधी हो [अटूमतवजुत्ता १२] १२ तेले के तप से युक्त हो और [अस्सुणि मुयमाणा होज्जा] आंसू वहा रही हो [एयारिसेण अभिग्गहेण जइ आहारो मिलिस्तइ तो पारणगं करिस्सामि] इस प्रकार के अभिग्रह से यदि आहार मिलेगा तो पारणा करूंगा [अन्नहा छम्मासी तवं करिस्सामित्ति कटु भगवं भिक्खटाए अडइ] अन्यथा छ मास का तप करूंगा ऐसा | अभिग्रह करके भगवान् भिक्षा के लिए भ्रमण करते थे [भगवओ सो अभिग्गहो न कत्थइ परिपुण्णो हवइ] किन्तु भगवान् का वह अभिग्रह कहीं पूरा नहीं होता था ॥५५॥
भावार्थ-लाट देश में विचरण करने के अनन्तर श्रमण भगवान् महावीर ने लाट
॥३३९॥