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कल्पसूत्रे सशब्दार्थ ॥३३८॥
भगवतोऽभिग्रह
वर्णनम्
पालगो] राजा का वादी नामक धर्माध्यक्ष था [गुत्तनामा अमच्चो] उसके गुप्त नामक अमात्य था [तस्स नंदा भज्जा] अमात्य की पत्नी का नाम नन्दा था [सा साविया आसी] वह श्राविका थी [अमू मिगावईए रायमहिसीए सही होत्था] वह राजरानी मृगावती की सखी थी [तत्थ णं भगवओ पोससुद्धाए पडिवयाए दव्यखेत्तकालभावं समस्सिय तेरसवत्थुसमाउलं इमं एयारूवं अभिग्गहं अभिग्गहीअ] भगवान् ने पौष शुक्ला प्रतिपदा के दिन द्रव्यक्षेत्र काल और भाव का आश्रय लेकर तेरह बोलों का अभिग्रह धारण किया [तं जहा-१ दव्वओ सुप्पकोणे] वे तेरह बोल ये थे-द्रव्य से १ सूप के कोने में (२ बप्फियामासा होज्जा) उबाले हुए उड़द हों [खेतओ दाइया कारागारे ठिया] ३ क्षेत्र से देनेवाली कारागार में हों [तत्थ वि देहलीए] कारागार में भी देहली पर हों [उबविट्ठा] सो भी बैठी हो [सा पुण एगं पायं बाहिं एगं पायं अंतो किच्चा ठिया ६ भवे] वह भी एक पैर बाहर और एक पैर भीतर करके बैठी हो, [कालओ
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