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________________ कल्पसूत्रे सशब्दार्थे ॥३३७|| भगवतो. |ऽभिग्रहI किया। [तत्थ णं अटुमतवेणं एगराइयं भिक्खुपडिमं पडिवण्णे झाणं झियाइ] वहां * अष्टम भक्त के साथ एक रात्रि की भिक्षु प्रतिमा को अंगीकार करके भगवान् ने ध्यान किया [तत्थ वि दिव्वे माणुस्से तेरिच्छे नानाविहे उवसग्गे सम्मं सहइ] वहां भो देवों सम्बन्धी मनुष्यों सम्बन्धी तथा तियचों सम्बन्धी नाना प्रकार के उपसर्गों को भलीभांति सहन किया [एवंविहेण विहारेण विहरमाणे भगवं एगारसं चाउम्मासं वेसालिए णयरीए ठिए] इसी प्रकार के विहार से विहरते हुए भगवान् ने ग्यारहवां चातुर्मास वैशाली नगरी में किया [तओ पच्छा सुसुमारं णयरं समणुपत्ते तदनंतर शिशुमार नगर में पधारे [तओ णं विहरमाणे कोसंबीए नयरीए समोसरिए] शिशुमार नगर से विहार करके कोशाम्बी नगरी में पधारे [तत्थ णं सयाणीओ राया] वहां शतानीक IPL नाम का राजा था [मिगावई महिसी] उसकी रानी का नाम मृगावती था [तीए विजया पड़िहारिया] उस महारानी की विजया नामकी द्वारपालिका थी [वाइणामओ धम्म ॥३३७॥
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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